Tuesday, 14 March 2017

संत पीपाजी
पीपा राव रा बडेरा सूर्यवंशी चौहान क्षत्रिय हा। गूंदलराव जायल (नागौर) सूं जाय'र पृथ्वीराज द्वितीय रै शासनकाल में गागरौन छेत्र रा 12 गढ परमार (डोड) राजपूतां सूं खोसिया। उणां रै बाद राजा देवनसी धारू खीची ई उण छेत्र माथै कब्जौ करनै उठै इज आपरी राजधानी थरपित करी। इम देवनसी री इग्यावीं पीढी में पीपा राव हुया। इणां रै पिता रौ नाम क्रोधसिंह हौ।
जिण छेत्र माथै राजा देवनसी धारू कब्जौ कर्यौ, उणरौ पुराणौ नाम 'डोडरगढ' हौ। वि.सं. 1251 में देवनसी इणरै राजा बीजलदेव डोड (परमार) नै जुद्ध में पराजित कर्यौ। बाद में आपरी बैन गंगाकुंवर री स्मृति में उण माथै दुरग बणवायौ जिणरौ नाम 'गंगारमण' या 'गागरोन' राख्यौ। उणी गागरोन माथै पीपा राव राज्य कर्यौ।
पीपा राव री जनम-तिति बाबत मत-मतान्तर बौत रैया है। 'भक्तमाल' रा लेखक संत नाभादास इणां नै स्वामी रामानंद रै 12 शिष्यां में सूं अेक मान्या है अर कबीर रै समकालीन बताया है। सो संत पीपा रौ जनम चैत सुधी 15, वि.सं. 1380 प्रवाणै 1323 ई. अर देहांत चैत सुदी 1, वि.सं. 1441 प्रवाणै 1384 ई. मानीजै। जदपि औ विसै शोध सारू आज खुलौ है, तदपि इत्तौ तौ सही है के पीपा राव रौ शासनकाल वि.सं. 1323-1348 रैयौ है।
पीपा राव बडा शूरवीर हा अर आपरै शासनकाल में आप केी लड़ाइयां लड़ी। इतिहासकार मुंहता नैणसी अर डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ई पीपा राव रै जुद्ध-कौसल रौ सांतरौ बखाम करियौ है। टोडा अर गागरोन रा जुद्ध इणां रै शासनकाल में बौत महत्व राखै। टोडा रै जुद्ध में पीपा राव लल्लन पठान, जिकौ के जतन बादसा रौ सेनापति हौ अर चालुक्य (सोलंकी)राजा डूंगरसिंह नै हराय'र टोडा माथै कब्जौ कर बैठ्यौ हौ, उण माथै हमलौ कर'र उणनै मार न्हाक्यौ अर टोडा राज्य आपरै सुसरै डूंगरसिंह नै सूंप'र पाछा गागरोन आयग्‌ा। दूजौ जुद्ध गागरोन में ई हुयौ। बादसा फिरोजशाह तुगलक री सेना मालवै माथै चढाई करती थकी गागरोन नै घेर लियौ। मलिक सरावतदार अर मलिक फिरोजखां रै नेतृत्व में शाही सेना हमलौ कर्यौ। इण जुद्ध में खीचियां नै हारय नीं सकण री वजै सूं शाही सेना नै पाछौ जावणौ पड्‌यौ।
'तारीख-मुहम्मदी' में उल्लेख है के इटावा-विद्रोह (सन् 1378) नै शांत करण रै तुरंत बाद बादसा फिरोजशाह तुगलक मलिकजादा फिरोज नै सेना समेत मालवै माथै हमलौ करण सारू भेज्यौ। वौ सेनापति मालवै रै नजीक चावै दुरग 'कालरोन' (फारसी लिपि में लिखावट हुवण सूं अशुद्ध लिखीज्यौ हुवै, सही गागरोन) हौ, उणनै घेर लियौ, पण जबरदस्त खप्पत करियां ई वौ किलौ फतै नीं हुय सक्यौ।
इण जुद्ध में दोनूं पगसां रा अणगिणत सैनिक काम आया जिणां री क्षत-विक्षत लासां च्यारूं कानी बिखरियोड़ी पड़ी ही। गिरज, सियाल, चीलां इत्याद झुंड रा झुंड चूंट-चूंट'र खाय रैया हा। सारौ ई छेत्र रगत सूं रंगग्यौ हौ। अैड़ौ दरसाव देख'र संसार री असारता रै प्रति वैराग पैदा हुवणौ सुभाविक ई हौ। जुद्ध अर मारकाट सूं उणां रौ हिरदै कलपण लागौ अर आजीविका सारू कपड़ा सीवण रौ काम करण लागा। उणां री अेक बाणी रै मुजब दूहौ चावौ है-
पीपा पाप न कीजियै, अलगौ रहीजै आप।
करणी जासी आपरी, कुण बेटौ कुण बाप।।
जीभ रै स्वाद सारू जीव-हत्या करण रे खिलाफ संत पीपा रौ औ उद्गार कित्तौ सहज अर सरल है-
जीव मार जौहर करै, खातां करै बखाण।
पीपा परतख ेदखलै, थाली मांय मसाण।।
पीपा राव आपरै मंत्री नै कासी प्रावस री व्यवस्था रौ आदेश दियौ अर वै कासी नगरी पूग'र स्वामी रामानंद रै दरसणां रौ लाभ उठायौ। स्वामी रामानंद इणां नै दीक्षा रै जोग जाण'र आपरौ शिष्य बणाय लियौ अर दीक्षा देय दी।
दीक्षा ग्रहण करियां रै उपरांयत पीपा भगवद्भक्ति अर लोक कल्याण में लागग्या अर अेक बगत अैड़ौ आयौ जद भगवद् साक्षात्कार ई कर्यौ।
संत पीपा जन-कल्याण अर देस-रक्षा में आपरै प्राणां रौ उत्सर्ग करण वालै क्षत्रियां रौ पतन देख'र दुखी हा। क्षत्रिय लूट-मार अर रक्त-पात करण में लाग्योड़ा हा, जिणसूं साधारण लोग पीड़ित हा। सो संत पीपा उणां नै सद्मारग माथै चालण री प्रेरणा देय'र उणां रौ उद्दार कर्यौ अर साधारण लोगां नै उणां रै ्‌त्याचारां सूं मुगती दिराई। संत पीपा रेै उपदेशां सूं प्रभावित हुय'र क्षत्रिय इणां नै आपरा साचा उद्धार करणिया अर सद्मारग दिखावणिया मानण लागिया अर इणां रै बतायोड़ै मारग माथै चाल'र आपरौ जीवण धिन्न करण लागिया। संत पीपा रै निरदेस सूं इज वै तरवार त्याग'र सुई धारण करी अर अेक सभ्य समाज रै दाई सिलाई रौ धंधौ अपणाय'र समाज मांय गौरवशाली अर आदर्श स्थान हासल कर लियौ। आज ी आखै भारत मायं संत पीपा रा अनुयायी घणी संख्या में पाया जावै। राजस्थान, मध्यप्रदेश (मालवा), गुजरात इत्याद प्रांतां मांय पीपा अनुयायियां री संख्या दूजै छेत्रां सूं बेसी है। वै खुद नै 'पीपापंथी' या 'पीपा क्षत्रिय दरजी' रै संबोधनां सूं संबोधित कर'र गौरवान्वित करै। राजपूतां रा सगला ई गौत्र इणां मांय पाया जावै।
संत पीपा री वाणी साखियां, पदां इत्याद रै रूपां मांय मिलै। लगैटगै 153 साखियां, 45 पद, 2 चित्रावली लघु ग्रंथ, 1 ककहरा जोग ग्रंथ अर 1 पांच पद वालौ वर्ण विचार ग्रंथ है।
संत पीपा स्वामी रामानं री गुरु परंपरा में आवण री वजै सूं अर नामदेव इत्यादआप सूं पैलड़ै संतां रै प्रबाव री वजै सूं निरगुण ब्रह्म रै प्रति ई आपरौ चिंतक व्यक्त कर्यौ है। इणां री वाणी मांय ब्रह्म रौ अलख, निर्विकार, निराकार अर निरगुण रूप साफ निंगै आवै। गुरु, जीव, जगत, माया, नाम-सुमरण, इंद्रिय-निग्रह इत्याद रौ वरणन ई संत पीपा कबीर इत्याद संतां रै समान ई कर्यौ है। पण, इणां री वाणी मांय दुराग्रह कम अर सत्याग्रह ज्यादा है। हठवाद इणां में कठैई नीं पायौ जावै।
संत पीपा निरगुण ब्रह्म रै उपासक रै रूप मांय ई सामी आवै। इष्ट घणां रै रूं-रूं मांय समायोड़ौ रैयौ। अै कठैई-कठैई योग कानी प्रवृत्त हुवता ई दीखै। पण मुख्य रूप सूं तौ अै अेक सरल भगत हा। अै नीं पूजा में विसवास राखै, नीं अचरणां में, नीं देवां में, नीं देवालयां में, नीं तीरथां में, नीं तीरथकरां में। अै तौ सगलां री दरसण आपरै घट मांय ई करै। इणनै ई अै साची पूजा, योग अर भगती मानै। अै खुद में अर इष्ट में कोई परदौ नीं स्वीकारै। अै तौ ब्रह्म मांय डूब जावणा चावै। आं री साधना-पद्धति मांय प्रेम है, विरह है जिका अंतस मांय पीव-मिलण री उत्कंठा, अभिलाषा अर विकलता पैदा करै अर अै सुमरण रै जरियै आपरै पीव रा दरसण कर लेवै। इण भांत इणां मांय सैज दाम्पत्य भाव री अनुभूति ई मिलै।
संत पीपा नीं तौ दर्शन रा पंडित हा अर नीं ई योगसूत्र रा जाणकार। इंद्रिय-संयम अर आत्म-नियंत्रण सूं खुद नै खरौ कंचन बणावण रा जतन अै जरूर कर्या। इणी जतनां में अै योग-साधना ई जरूर करी हुवैला। इणां री वाणी मांय त्रिकुटी, नाद, बिंदु, दशद्वारा घट, अंतर-नयन, अणहदनाद, सूर, चंद्र इत्याद यौगिक क्रियावां बाबत सबदावली रौ हुवणौ इणां रै योग-साधना में प्रवृत्त हुवण रौ संकेत देवै। निरगुण रै प्रति इणां री आस्था गाढी है। अै आपरी वाणी मांय जिण रूप न रंग अंग, न करण मरण अर जीव कैय'र आपरै ब्रह्मा रौ परिचै देवै, पण उणनै पावण सारू अै पीवमय हुय जावै। उणरै बीच मांय कोी परदौ नीं स्वीकारै- "पीपा पिव सौं परदौ किसौ, सो तौ घणी हमार" कैय'र अै आपरौ दर्शन सैज समझावै। इणां री साधना रौ प्रमुख मारग सैज दर्शन सामी राखै। इणां री साधना रौ प्रमुख सैज भगती मारग है। आडंबर अर अहंकार इणां री साधना में कठैई नीं। अै कैवै-
अहंकारी पावै नहीं, कितनौइ घरै समाध।
पीपा सहज पहूंचसी, साहिब कै घर साध।।
दरअसल धरम री रूढिवादिता अर सामाजिक कुरीतियां रै खिलाफ उत्तरी भारत मांय रामानंद, कबीर, रैदास इत्याद संतां आपरी शिक्षावां सूं जिकौ अेक सुधारवादी आंदोलन सरु कर्यौ हौ, उणीं सूं प्रेरणा लेय'र राजस्थान मांय ी घन्ना अर पीपा धारमिक छेत्र मांय अेक नवी विचारधारा नै जनम यिौ। संत पीपा आपरै आदरसां सूं समाज नै सुधारण री कोसिस करी अर निजी जीवण सूं अेक नवौ आदरस सामी राखियौ। इणी वजै सूं इणां रा विचार सगलै ई वरगां रै लोगां नै प्रभावित कर सक्या। ऊंच-नीच रै भे-भाव सूं परै सगला ई प्राणी ईश्वर री नजिरा में समान है-संत पीपा री शिक्षावां आ इजकैवै।
संत पीपा रै मतावलंबियां रा धारमिक स्थान अणगिणत है, जिणां में सूं खास-खास इण भांत-गागरोन दुरग स्थित संत पीपा रौ मिंदर, पीपा री छत्री अर बाग, काली सिंघ अर आहू नदियां रै संगम माथै गुफा-मिंदर, टोडा रायसिंह मांय राणी सीता सोलंकणी री समाधि, द्वारका कनै आरमाडा़ मांय पीपावट, अमरोली (गुजरात) मायं पीपावाव, काशी मांय पीपा कूप, जोधपुर मांय पीपाड़ गाम जिणरौ नाम उठै अेक पीपल हेठै पीपा रै साधना कर्यां सूं पड़ियाौ। इणां रै अलावा संत पीपा जयंति मनाईजै। इण भांत संत पीपा राजस्थान मांय अेक आदरस थरपता थकां समाज कल्याण री जोत जगाई।

Tuesday, 14 February 2017

                      bhagwan shri dwarkadhish & shri pipa ji maharaj ka mandir  Napasar 

Wednesday, 4 January 2017


पीपाजी (१४वीं-१५वीं शताब्दी) गागरोन के शाक्त राजा एवं सन्त कवि थे। वे भक्ति आंदोलन के प्रमुख संतों में से एक थे। गुरु ग्रंथ साहिब के अलावा २७ पद, १५४ साखियां, चितावणि व क-कहारा जोग ग्रंथ इनके द्वारा रचित संत साहित्य की अमूल्य निधियां हैं

जीवन परिचय

भक्तराज पीपाजी का जन्म विक्रम संवत १३८० में राजस्थान में कोटा से ४५ मील पूर्व दिशा में गागरोन में हुआ था।[1] वे चौहान गौत्र की खींची वंश शाखा के प्रतापी राजा थे। सर्वमान्य तथ्यों के आधार पर पीपानन्दाचार्य जी का जन्म चैत्र शुक्ल पूर्णिम, बुधवार विक्रम संवत १३८० तदनुसार दिनांक २३ अप्रैल १३२३ को हुआ था। उनके बचपन का नाम प्रतापराव खींची था। उच्च राजसी शिक्षा-दीक्षा के साथ इनकी रुचि आध्यात्म की ओर भी थी, जिसका प्रभाव उनके साहित्य में स्पष्ट दिखाई पडता है। किवदंतियों के अनुसार आप अपनी कुलदेवी से प्रत्यक्ष साक्षात्कार करते थे व उनसे बात भी किया करते थे।
पिता के देहांत के बाद संवत १४०० में आपका गागरोन के राजा के रुप में राज्याभिषेक हुआ। अपने अल्प राज्यकाल में पीपाराव जी द्वारा फिरोजशाह तुगलक, मलिक जर्दफिरोज व लल्लन पठान जैसे योद्धाओं को पराजित कर अपनी वीरता का लोहा मनवाया। आपकी प्रजाप्रियता व नीतिकुशलता के कारण आज भी आपको गागरोन व मालवा के सबसे प्रिय राजा के रुप में मान सम्मान दिया जाता है।

रामानंद की सेवा में

दैवीय प्रेरणा से पीपाराव गुरु की तलाश में काशी के संतश्रेष्ठ जगतगुरु रामानन्दाचार्य जी की शरण में आ गए तथा गुरु आदेश पर कुए में कूदने को तैयार हो गए। रामानन्दाचार्य जी आपसे बहुत प्रभावित हुए व पीपाराव को गागरोन जाकर प्रजा सेवा करते हुए भक्ति करने व राजसी संत जीवन व्यतित करने का आदेश दिया। एक वर्ष पश्चात संत रामानन्दाचार्य जी अपनी शिष्य मंडली के साथ गागरोन पधारे व पीपाजी के करुण निवेदन पर आसाढ शुक्ल पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) संवत १४१४ को दीक्षा देकर वैष्णव धर्म के प्रचार के लिये नियुक्त किया। पीपाराव ने अपना सारा राजपाठ अपने भतीजे कल्याणराव को सौपकर गुरुआज्ञा से अपनी सबसे छोटी रानी सीताजी के साथ वैष्णव -धर्म प्रचार-यात्रा पर निकल पडे।

चमत्कार

पीपानन्दाचार्य जी का संपुर्ण जीवन चमत्कारों से भरा हुआ है। राजकाल में देवीय साक्षात्कार करने का चमत्कार प्रमुख है उसके बाद संयास काल में स्वर्ण द्वारिका में ७ दिनों का प्रवास, पीपावाव में रणछोडराय जी की प्रतिमाओं को निकालना व आकालग्रस्त इस मे अन्नक्षेत्र चलाना, सिंह को अहिंसा का उपदेश देना, लाठियों को हरे बांस में बदलना, एक ही समय में पांच विभिन्न स्थानों पर उपस्थित होना, मृत तेली को जीवनदान देना, सीता जी का सिंहनी के रुप में आना आदि कई चमत्कार जनश्रुतियों में प्रचलित हैं।

रचना की संभाल

गुरु नानक देव जी ने आपकी रचना आपके पोते अनंतदास के पास से टोडा नगर में ही प्राप्त की। इस बात का प्रमाण अनंतदास द्वारा लिखित 'परचई' के पच्चीसवें प्रसंग से भी मिलता है। इस रचना को बाद में गुरु अर्जुन देव जी ने गुरु ग्रंथ साहिब में जगह दी।

रचना

पीपाजी की रचना का एक नमूना
कायउ देवा काइअउ देवल काइअउ जंगम जाती ॥
काइअउ धूप दीप नईबेदा काइअउ पूजउ पाती ॥१॥
काइआ बहु खंड खोजते नव निधि पाई ॥
ना कछु आइबो ना कछु जाइबो राम की दुहाई ॥१॥ रहाउ ॥
जो ब्रहमंडे सोई पिंडे जो खोजै सो पावै ॥
पीपा प्रणवै परम ततु है सतिगुरु होइ लखावै ॥२॥३॥